अनभिज्ञ हूं मैं मेरे ही सम्मान से
अनभिज्ञ हूं मैं मेरे ही सम्मान से
स्वयं के अभिमान से
अनभिज्ञ हूं मैं मेरे ही सम्मान से
व्यर्थ हूं मैं यह विचार संपूर्ण है
निरर्थक है व्याप्त सार्थक अपूर्ण है
बाहर उजाला अंतर मन घिरा तम के जंजाल से
अनभिज्ञ हूं मैं मेरे ही सम्मान से
स्वयं की खोज में व्यवधान जारी है
इतना गिरा कि लगता उठना भारी है
फिर भी इतराता हूं मन के षैतान से
अनभिज्ञ हूं मैं मेरे ही सम्मान से
दूसरों को सलाह देना आसान है
स्वयं को समझने में अंजान हैं
डरता हूं फिर बुद्धि के प्रभाव से
अनभिज्ञ हूं मैं मेरे ही सम्मान से
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